दर्द से अहम् ब्रह्मास्मि
ईश्वर ने वह सबसे बड़ी निधि
सबसे बड़ा उपहार
जो हमें दिया है
जिसकी वजह से हमारा शरीर
वैसे ही बना हुआ है
जैसा कि था जन्म के समय में;
हाँ थोड़ा बहुत बढ़ जरूर गया है;
लेकिन अनुपात वही है;
वह निधि है पीड़ा, दर्द।
ईश्वर ने वह सबसे बड़ी निधि
सबसे बड़ा उपहार
जो हमें दिया है
जिसकी वजह से हमारा शरीर
वैसे ही बना हुआ है
जैसा कि था जन्म के समय में;
हाँ थोड़ा बहुत बढ़ जरूर गया है;
लेकिन अनुपात वही है;
वह निधि है पीड़ा, दर्द।
दर्द महसूस होता है
इसलिए हम छेड़छाड़ नहीं करते
शरीर को दर्द महसूस होता है
इसीलिए हम बचाने की कोशिश करते हैं
देखभाल करते हैं।
जहाँ पीड़ा नहीं महसूस होती
हम अहंकार के नाम पर
अलग दिखने के नाम पर
क्या-क्या भेष और स्वांग बनाते हैं
बालों को काटने में दर्द नहीं होता
तो कितने-कितने चित्र-विचित्र
बालों के स्वरूप मिलते हैं,
डिजाइनें मिलती हैं।
यदि शरीर को दर्द नहीं मिला होता
तो आज हमारे सामने
कितने-कितने तरह के शरीर होते
कितने रूप
कितनी डिजाइनें।
तो पीड़ा ने ही
हमारे शरीर को सीमा दी है,
विस्तार दिया है,
और परिभाषा दी है।
हमारा शरीर वहाँ तक है
हम वहाँ तक हैं
जहाँ तक हमें पीड़ा महसूस होती है।
यदि अब हम अपने शरीर से बाहर की यात्रा करें
तो दर्द की जगह पर वह ईश्वरीय उपहार रूप ले लेता है
संवेदना का, दूसरे का दर्द महसूस करने की क्षमता का।
हम जिसका भी दर्द महसूस करते हैं
वह हमारे शरीर का हिस्सा हो जाता है,
हमारा विस्तृत शरीर हो जाता है।
हमारा विस्तार वहाँ तक है
हम वहाँ तक हैं
हमारा विराट शरीर वहाँ तक है
जहाँ तक की संवेदना हमें महसूस होती है।
यदि हम अपनी संवेदना के विस्तार को बढ़ाते जाएं
यहाँ तक कि
सारा समाज, सारे लोग
सारा विश्व, पूरी प्रकृति
और सारा ब्रह्माण्ड उसमें शामिल हो जाए
सबकी संवेदना हम महसूस कर सकें
सबसे जुड़ाव हम महसूस कर सकें
तो पूरा ब्रह्माण्ड हमारा शरीर हो जाता है
हमारा विस्तार हो जाता है;
और फिर हम महसूस कर सकते हैं, करने लगते हैं
‘अहम् ब्रह्मास्मि।
हम ब्रह्म हैं
हम ब्रह्माण्ड हैं।'
इसलिए हम छेड़छाड़ नहीं करते
शरीर को दर्द महसूस होता है
इसीलिए हम बचाने की कोशिश करते हैं
देखभाल करते हैं।
जहाँ पीड़ा नहीं महसूस होती
हम अहंकार के नाम पर
अलग दिखने के नाम पर
क्या-क्या भेष और स्वांग बनाते हैं
बालों को काटने में दर्द नहीं होता
तो कितने-कितने चित्र-विचित्र
बालों के स्वरूप मिलते हैं,
डिजाइनें मिलती हैं।
यदि शरीर को दर्द नहीं मिला होता
तो आज हमारे सामने
कितने-कितने तरह के शरीर होते
कितने रूप
कितनी डिजाइनें।
तो पीड़ा ने ही
हमारे शरीर को सीमा दी है,
विस्तार दिया है,
और परिभाषा दी है।
हमारा शरीर वहाँ तक है
हम वहाँ तक हैं
जहाँ तक हमें पीड़ा महसूस होती है।
यदि अब हम अपने शरीर से बाहर की यात्रा करें
तो दर्द की जगह पर वह ईश्वरीय उपहार रूप ले लेता है
संवेदना का, दूसरे का दर्द महसूस करने की क्षमता का।
हम जिसका भी दर्द महसूस करते हैं
वह हमारे शरीर का हिस्सा हो जाता है,
हमारा विस्तृत शरीर हो जाता है।
हमारा विस्तार वहाँ तक है
हम वहाँ तक हैं
हमारा विराट शरीर वहाँ तक है
जहाँ तक की संवेदना हमें महसूस होती है।
यदि हम अपनी संवेदना के विस्तार को बढ़ाते जाएं
यहाँ तक कि
सारा समाज, सारे लोग
सारा विश्व, पूरी प्रकृति
और सारा ब्रह्माण्ड उसमें शामिल हो जाए
सबकी संवेदना हम महसूस कर सकें
सबसे जुड़ाव हम महसूस कर सकें
तो पूरा ब्रह्माण्ड हमारा शरीर हो जाता है
हमारा विस्तार हो जाता है;
और फिर हम महसूस कर सकते हैं, करने लगते हैं
‘अहम् ब्रह्मास्मि।
हम ब्रह्म हैं
हम ब्रह्माण्ड हैं।'
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