Monday, February 4, 2013


हमारे सपने किन.किन अहंकारों से टकरा गये
और पंख किन.किन दीवारों से टकरा गये।
कुछ न कुछ तो नया रास्ता निकलेगा ही
जब आज के हालात पुराने संस्कारों से टकरा गये।
सभ्यतायंे तो हमेशा संगम ही करती रहीं
असभ्य व्यवहार ही सदैव असभ्यताओं से टकरा गये।
सबके जीने के अलग.अलग तरीके व औजार थे
लेकिन लोगों के औजार ही औजारों से टकरा गये।
साहित्य व विचार तो सबके भले के लिए ही हैं
फिर न जाने क्यँूं कुछ विचार ही विचारों से टकरा गये।
तमाम समस्यायें हो गयीं सहज ही वहीं पर पैदा
अन्दर के भाव जब बाह्य संचारों से टकरा गये।
वैसे तो मैंने सबकी सेवा करने का क्षेत्र ही चुना
फिर भी जाने क्यों मेरे काम दूसरों के अधिकारों से टकरा गये।
अंधेरों ने न तो कभी उजाले से, न अंधेरे से ही संघर्ष किया
आश्चर्य! हमेशा उजाले ही उजालों से टकरा गये।
ईश्वर जहां भी है, बैठा हंस ही रहा है देखकर
कभी साकार साकारों से या निराकार निराकारों से टकरा गये।
गुल खारों के साथ डाल पर मेल जोल से रहें तो ठीक
लेकिन हस्र साफ है जब वही गुल खारों से टकरा गये ।
हवा ही है जो धरा पर सारे ही जीवों को जोड़े हुए है
लेकिन क्या.क्या होता है बहार जब बहारों से टकरा गये।
सबसे जुड़ाव व संवेदनशीलता न महसूस कर ही
अक्सर अवतार तक अवतारों से टकरा गये।

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